नित्य गीता पाठ

नित्य गीता पाठ

1.नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: .
चनं क्लेदयंत्यापो शोषयति मारुत: .
अर्थ-इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता. आत्मा अजर-अमर है.(2/23)

2.मन्मना भव मदभक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु.
मामेवैष्यसि युक्तवैवमात्मानं मतपरायण.
अर्थ-मुझमें मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करनेवाला हो, मुझको प्रणाम कर. इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा.(9/34)

3.भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोअर्जुन.
ज्ञातुं द्रष्टुं तत्त्वेन प्रवेष्टुं परंतप.
अर्थ-परंतु हे परंतप अर्जुन! अनन्य भक्ति के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुजरूपवाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिए, तत्त्व से जानने के लिए तथा प्रवेश करने के लिए अर्थात एकीभाव से प्राप्त होने के लिए भी शक्य हूं.(11/54)

4.मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्त: संङ्गवर्जित:.
निर्वैर: सर्वभूतेषु : मामेति पाण्ड्व.
अर्थ-हे अर्जुन! जो पुरुष केवल मेरे लिए ही सम्पूर्ण कर्त्तव्यकर्मोंको करनेवाला है, मेरे परायण है, मेरा भक्त है, आसक्तिरहित है और सम्पूर्ण भूतप्राणियों में वैरभावसे रहित है, वह अनन्यभक्तियुक्त पुरुष मुझको ही प्राप्त होता है.(11/55)

5.मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय.
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं संशय.
अर्थ-मुझमें मन को लगा और मुझमें ही बुद्धि को लगा, इसके उपरांत तू मुझमें ही निवास करेगा, इसमें कुछ भी संशय नहीं है.(12/8)

6.शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वर:
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात.
अर्थ-वायु गन्ध के स्थान से गन्ध को जैसे ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादिका स्वामी जीवात्मा भी जिस शरीर का त्याग करता है, उससे इन मनसहित इन्द्रियोंको ग्रहन करके जिस शरीरको प्राप्त होता है-उसमें जाता है.(15/8)

7.इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन.
चाशुश्रूषवे वाच्यं मां योअभ्यसूयति.
अर्थ-तुझे यह गीतारूप रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में तो तपोरहित मनुष्य से कहना चाहिये, भक्तिरहित से और बिना सुननेकी इच्छावाले से ही कहना चाहिये; तथा जो मुझमें दोषदृष्टि रखता है उससे तो कभी भी नहीं कहना चाहिए.(18/66)
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(स्नान करते समय नित्य बोलने वाला मंत्र, जिससे गंगा-स्नान का पुण्य मिलता है) ओम नमो दशहराय नारायणाय गंगाय नमो नम: .

(अच्छी निद्रा लाने का मंत्र) शुद्धे-शुद्धे महायोगिनी महानिद्रे स्वाहा.

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